उदयपुर। रक्षाबंधन के साथ जुडा है एक पर्व वीर फूली। मेवाड़ में यह विशेष रूप से मनाया जाता है। यह सूती धागे को बांधकर मनाया जाता है। बहनें इस फूली को अपने किसी अंग विभूषण पर बांध लेती हैं। राखी से पहले पडऩे वाले दो रविवारों में से पहले रविवार को बहने अपने किसी भी गहने पर फूली के रूप में सूती धागे के तार बांध लेती हैं। यह भैया के दीर्घायु की कामना के साथ बांधे जाते हैं।
भारतीय व्रतों में डोरक व्रतों की परंपरा इस व्रत में भी देखी जा सकती है।
एक सप्ताह तक बंधे रहने के बाद, रविवार को ही इसको उतारा जाता है। इसे वडी करना कहा जाता है। वडी के मौके पर चूरमा बाटी बनाई जाती है। भैया को न्यौता जाता है। वह बहन को राखी के मौके पर अपने घर आने का निमंत्रण देता है। इस प्रकार राखी केवल एक दिन का नहीं लगभग तीन हफ्तों का पर्व है।
मेवाड़ में रानियां वीर फूली के पर्व पर बहुत खर्चा करती थीं। 17 वीं सदी में महाराणा राजसिंह कालीन बहियों में इस पर्व पर रानियों द्वारा किए गए व्यय का विवरण मिलता है।
इसी प्रकार महाराणा भीमसिंह कालीन बहियों में भी वीर फूली पर्व पर जनाना महल में होने वाले खर्चों का विवरण मिलता है। वीर फूली से ही विदित होता है कि राखी मूलत: लोकपर्व है।
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